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  • पहली बार
    प्रभाकर सिन्हा का आलेख 'विवाह के विरुद्ध' - प्रभाकर सिन्हा *डॉ. प्रभाकर सिन्हा (जन्म 1938) देश के प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं में से एक हैं। वे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL) ...
    10 hours ago
  • गुफ्तगू
    - उमाकांत जी के घर में दलित महिला बनाती थी खाना उन्होंने बचपन से ही बच्चों को दी कविता लिखने-पढ़ने की ट्रेनिंग कर्मचारी यूनियन में सक्रियता के कारण एजी ऑफिस...
    2 days ago
  • प्रतिभा की दुनिया ...
    कुछ सवाल, कुछ बेचैनियों का संसार है ‘कबिरा सोई पीर है’ - '*कबिरा सोई पीर है' उपन्यास पर जगमोहन सिंह कठैत जी ने आत्मीय और मौजूं टिप्पणी लिखी है। जगमोहन जी लंबे समय से सामाजिक मुद्दों पर गहराई से काम कर रहे हैं। ...
    6 days ago
  • शब्दों का सफर
    आलपिन का सफरनामा #शब्दकौतुक - *चुभाने-जोड़ने की चीज़ें* ▪हिंदी में गाँव से शहर तक और बच्चों से बूढ़ों तक समान भाव से बोला जाने वाला शब्द है 'आलपिन' जो यूरोप के सुदूर दक्षिणी पश्चिमी ...
    4 weeks ago
  • लहरें
    जादू टूटता भी तो है। - There are monsters inside my heart. Every couple of days or months I need to go on a holiday to let them lose in the wilderness of solitude. They graze u...
    2 months ago
  • चंचल चौहान
    INDIAN AESTHETICS: NEW PERSPECTIVES - * I was invited to deliver the KEY NOTE for two-day seminar at SWAMI RAMANAND TIRTH MARATHAWADA UNIVERSITY NANDED, 17-18 FEBRUARY 2025. The topic of ...
    4 months ago
  • अस्सी चौराहा
    काशी की रेत पर 'दिव्य निपटान' - √राश की डायरी --------------------- रामचंद्र शुक्ल ने नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित 'शब्द सागर' में 'निबटान' के साथ 'निपटान' शब्द को भी लिया। 'निपटान' शब...
    4 months ago
  • पास पड़ोस
    - आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें *इस बार ‘वान’ में क्या देंगे ?* मकर संक्रांति के आगमन से एक सप्ताह पूर्व यह प्रश्न हमारे घर की संसद में उठाया जाने लगता...
    5 months ago
  • सोच
    और जिंदगी चलती रही - राधाकृष्ण सिंगबोंगा है, वह मरंगबुरु पर रहता है। बिरबोंगा जंगल में रहता है। हातुबोंगा गांव की रक्षा करता है। देसाउली, गांवादेउती, दरहा कितना गिनाएं, बहुत बो...
    6 months ago
  • लिखो यहां वहां
    विद्यासागर स्मृति सम्मान 2024 - सादगी और सुरुचिपूर्ण तरह से सम्पन्न हुए विद्यासागर स्मृति सम्मान के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गुरदीप खुराना ने कहा कि कथाकार ...
    8 months ago
  • मेरी संवेदना
    युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो .... - . 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से लड़ी जा...
    9 months ago
  • परवाज़...शब्दों के पंख
    सामयिक सामाजिक-पारिवारिक टिप्पणियाँ - - इन दिनों प्रकाशित कुछ आलेख अमर उजाला
    1 year ago
  • चर्चा मंच
    युद्ध - युद्ध / अनीता सैनी ….. तुम्हें पता है! साहित्य की भूमि पर लड़े जाने वाले युद्ध आसान नहीं होते वैसे ही आसान नहीं होता यहाँ से लौटना इस धरती पर आ...
    1 year ago
  • अनुनाद
    उनकी माँग में तुम्हारी भलाई भी शामिल है...-इंडोनेशियाई साहित्यकार एगुस सर्जोनो की कविता - चयन एवं अनुवाद / यादवेंद्र - *1962 **में बांडुंग में जन्मे एगुस **सर्जोनो ** इंडोनेशिया के प्रमुख कवि* *, *लेखक और नाटककार हैं, जिन्होंने *इंडोनेशिया** के साहित्य का अध्ययन और बा...
    2 years ago
  • Mohalla Live
    How to Make Seeded Oat Bread - How to Make Seeded Oat Bread You know those gorgeous seed-encrusted loaves of bread you see in bakery windows? The kind you see and think, that must take...
    2 years ago
  • समालोचन
    - एवलीन
    3 years ago
  • chhammakchhallo kahis
    आखिर, प्रोब्लेम क्या है इंटर कास्ट मैरेज़ में? - शादी पर बात करना बड़ा अजीब सा लगता रहता अहै। हमेशा लगता है, नौ दिन चले अढ़ाई कोस। जो हमारे समय की समस्या, वही आज के समय की दिक्कत! कब निकलेंगे हम सब इन निरर...
    5 years ago
  • veethika
    जन्मदिन की शुभकामनाएँ - *जन्मदिन की शुभकामनाएँ पिताजी !* 14 Feb 2020 2003 के नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन मैक्सवेल कट्जी अपने नोबेल प्रीतिभोज के अवसर पर बताते हैं कि पुरस्कार मिलने प...
    5 years ago
  • हमारी आवाज़
    मुफ़्तख़ोर कौन है ? - कल रास्ते में चौबे जी मिल गए। दुःख भरे खीझ खीझकर कहने लगे, जनता मुफ़्तखोर हो गयी है। जनता को सब मुफ़्त में चाहिए। मैंने पूछा, जनता को क्या मुफ़्त में चाहिए ?...
    5 years ago
  • शब्दों के माध्यम से
    डॉ खगेन्द्र ठाकुर के निधन पर प्रलेस घाटशिला ने की स्मृति सभा - रिपोर्ट : आज घाटशिला स्थित आई सी सी मजदूर यूनियन के हाल में प्रलेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष मंडल के सदस्य, झारखंड प्रलेस के संरक्षक, प्रख्यात आलोचक, कवि और ...
    5 years ago
  • पुरवाई
    इन्हीं तारीखों समय और दिनों में - आरसी चौहान - वह कवियों की तरह नहीं लिखते कविताएं खेतों में बोते हैं अपनी मेहनत के बीज उनके अंखुआने से नाचती है धरती अपनी धुरी पर और जीवन कुनमुनाता है मधुर मंद आज उन...
    5 years ago
  • जनपक्ष
    बलात्कार को अपनी राजनीति के खाँचे में न सेट करें - शुभा - हैदराबाद की हालिया घटना के सन्दर्भ में जो प्रतिक्रिया सामने आई हैं वह बहुत विडम्बनामय और कहीं-कहीं जुगुप्सा पैदा करने वाली हैं.कुछ अपवाद भी हैं तो वे अ...
    5 years ago
  • मौन के खाली घर में... ओम आर्य
    और इस तरह मारा मैंने अपने बोलने को - ———— मुझे कुछ बोलना था पर मैं नहीं बोला और ऐसा नहीं है कि मैं बोलता तो वे सुन हीं लेते लेते पर मैं नहीं बोला मैं नहीं बोला जब कि मुझे एक बंद कमरे से बोलने क...
    5 years ago
  • कुमार अम्‍बुज
    ओल्गा तोकारचुक - #लोगों #का #दिमाग #खोलने #के #लिए #लिखना ''बिखरे हुए खिलौनों के बीच, खिड़की के पास, अँधेरे में, ठंडे कमरे में बैठी एक बच्ची।'' ''यह वायदा है कि शायद हम अब...
    5 years ago
  • असुविधा
    ऐनी सेक्सटन की कविताएँ : अनुवाद - अनुराधा अनन्या - पिछली सदी के आरम्भ में अमेरिका में के समृद्ध व्यापारिक घर जन्मीं* ऐनी सैक्सटन*, एक असाधारण कवयित्री हैं। उनकी कविताओं को confessional verse, स्टाइल की...
    5 years ago
  • एक ज़िद्दी धुन
    कविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन - भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार समारोह में शुभम श्री आई नहीं थीं। अच्युतानंद मिश्र पहले ही कविता पढ़ चुके होंगे। अदनान कफ़ील दरवेश पढ़ रहे थे। उनकी तस्वीरों और कव...
    5 years ago
  • प्रत्यक्षा
    -
    5 years ago
  • अनुशील
    अँधेरे में - हर वो शक्ति जिसे बाती होने का गौरव हासिल है उसे प्रणाम है जलना ही होगा कि चहुँ ओर अँधेरा बहुत है आख़िर जलना बातियों के ही नाम है
    5 years ago
  • सबद...
    लवली गोस्वामी की तीन नई कविताएं - *(लवली गोस्वामी हिंदी की युवा कवयित्री हैं। बहुत कम और लंबे-लंबे अंतराल लेकर कविताएं लिखती हैं। इसीलिए उनका स्वर 'अर्धविरामों में विश्राम' से बना ...
    6 years ago
  • devyani
    काबुल मेरा यार - *खालिद हुस्सैनी की किताब 'काइट रनर' के एक अंश का अंग्रेजी से अनुवाद * मलबा और भिखारी। जहाँ भी मेरी निगाह जाती, बस यही नज़ारा था। मुझे याद है बचपन के दिन...
    6 years ago
  • अज़दक
    एक जवान साथिन के लिए जो अब कहां जवान रही.. - ज़माना हुआ एक कबीता लिखे थे. एक जनाना थी, दुखनहायी थी, रहते-रहते मुंह ढांपकर रोने लगती थी, थोड़ा हम जानते-समझते थे, मगर बहुत सारा हमरे पार के परे था. सुझ...
    6 years ago
  • Pratibimb
    - निर्देशक की डायरी 52 सिनेमा में स्कोप; गुरिल्ला फ़िल्म थियरी मैं चाहता हूँ कि सिनेमा का विस्तार हो. इस समय से अधिक सिनेमा बनाना कभी आसान नहीं होगा और इस सम...
    6 years ago
  • कबाड़खाना
    मैं हंसते हंसते दम तोड़ देता अगर मुझे रोना न आता - अमित श्रीवास्तव की कविता - हेनरी रूसो की पेंटिंग 'हॉर्स अटैक्ड बाई अ जगुआर' अमित श्रीवास्तव की कविता की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह एक साथ अनेक परतों और आयामों पर काम करती जाती है - कई...
    6 years ago
  • सिताब दियारा
    होलोकास्ट और सिनेमा - रामजी तिवारी - "होलोकास्ट और सिनेमा" को लेकर इधर बीच एक पत्रिका के कुछ लिखा था | सोचा कि इसे सिताब दियारा ब्लॉग के पाठकों के साथ भी सांझा करता चलूँ | ...
    6 years ago
  • अजेय
    कस्बों में नया इंडिया -- शेष भाग - *लाईब्रेरी परिसर वाली मीटिंग * एक लड़के ने लिखा कि बहुत दिन हो गए हैं ,मिलते हैं ; कहीं बैठते हैं दूसरे लड़के ने कहा कि हाँ बैठते हैं न ! काम से फ्री हो...
    6 years ago
  • समुद्र पार के पाखी
    तुम्हारी कविताओं में इतना अँधेरा क्यों है ? - विंड ब्लोन ग्रास अक्रॉस द मून, हिरोशिगे Wind Blown Grass Across the moon, Hiroshige तुम्हारी कविताओं में इतना अँधेरा क्यों है ? क्या चाँद पर भी, अधिकतर अ...
    6 years ago
  • अपनी बात
    परकाया - डॉ कलाम! अच्छा हुआ आप चले गए। अच्छा हुआ आप हिन्दू ह्रदय सम्राटों के पैरों में बैठ गए अच्छा हुआ आप साईँ बाबा और शंकराचार्यों के आशीर्वाद के ओट तले रहे वरना...
    6 years ago
  • आवारा हूँ...
    दि गुड, दि बैड एंद दि अग्ली : सिनेमा 2017 पर ‘विशेष टिप्पणी’ - अभिनय में ये साल राजकुमार राव का रहा। संयोग कुछ ऐसा बना कि इस कैलेंडर इयर में आश्चर्यजनक रूप से उनकी सात फ़िल्में रिलीज़ हुईं। इनमें आॅल्ट बालाजी की महत्वा...
    7 years ago
  • अपनी बात
    नेहरू का रास्ता - जीवन दृष्टि और राजनीतिक विचार के मामले में नेहरू और गांधी का रवैया एकदम भिन्न किस्म का था। गांधी का सुसंगत विचार-प्रणाली और जीवन दृष्टि के साथ सार्वजनि...
    7 years ago
  • shashikant
    - विफल प्यार, पुरुषों से मिले अनुभव और विवाहेतर संबंध को खुलेपन से व्यक्त करनेवाली लेखिका आज 1 फरवरी है. गूगल ने आज अँग्रेजी व मलयालम भाषा की भारतीय लेखिक...
    7 years ago
  • शरद कोकास
    शरद कोकास की लम्बी कविता 'देह' पर राजेश जोशी की चिठ्ठी - *पहल 104 में प्रकाशित शरद कोकास की लम्बी कविता 'देह' पर राजेश जोशी की चिठ्ठी * प्रिय शरद , बहुत दिन बाद तुम्हारी लम्बी कविता देह को पढ़ा है । हालांकि एक ...
    7 years ago
  • दख़ल की दुनिया
    हमारा अपना महिषासुर - गौरी लंकेश एक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक, जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यो से रक्षा की। महिषासुर ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जो सहज ही अपनी ...
    7 years ago
  • पढ़ते-पढ़ते
    वेरा पावलोवा की दो कविताएँ - *"एल्बम फॉर द यंग (ऐंड ओल्ड)" नाम है वेरा पावलोवा के नए कविता संग्रह का. पिछले कविता संग्रह "इफ देयर इज समथिंग टू डिज़ायर" की तरह इस संग्रह की कविताओं का भ...
    7 years ago
  • हरकीरत ' हीर'
    इश्क़ का बीज - लो मैंने बो दिया है इश्क़ का बीज कल जब इसमें फूल लगेंगे वो किसी जाति मज़हब के नहीं होंगे वो होंगे तेरी मेरी मुहब्बत के पाक ख़ुशनुमा फूल तुम उन अक्षरों से मुहब्...
    7 years ago
  • नई बात
    काव्यशास्त्रविनोद-१०: एक मेरी मुश्किल है जनता (रघुवीर सहाय) - (१) एक दिन इसी तरह आयेगा---- रमेश कि किसी की कोई राय न रह जायेगी-----रमेश क्रोध होगा पर विरोध न होगा अर्जियों के सिवाय-----रमेश ख़तरा होगा ख़तरे की घंटी होगी ...
    8 years ago
  • अनकही बातें
    सड़क -
    8 years ago
  • दन्तेवाड़ा वाणी
    कार्यकर्ताओं को जेल - प्रोफेसर जी एन साईबाबा, प्रशांत राही, हेम मिश्रा,पंडू नारोते और महेश तिर्के को गढ़चिरोली ने नक्सलियों की मदद करने की आरोप में उम्र कैद की सजा दी है, इनमें ...
    8 years ago
  • जानकी पुल
    गीत चतुर्वेदी के नए संग्रह से कुछ कविताएँ - इस साल पुस्तक मेले में एक बहु प्रतीक्षित कविता संग्रह भी आया. गीत चतुर्वेदी का संग्रह 'न्यूनतम मैं'. गीत समकालीन कविता के ऐसे कवियों में हैं जिनकी हर काव...
    8 years ago
  • बना रहे बनारस
    हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को नये साल की शुभकामनाएं! - सर्वश्वेरदयाल सक्सेना की ये कविता साल 2017 की आगवानी में व्हाट्सऐप ग्रुप से फ़ेसबुक तक घूम रही है। डिजिटल संसार में अपने प्रिय कवियों को विचरते देखना एक सु...
    8 years ago
  • feminist poems
    नक्कारखाना समाज - इतना खराब भी नहीं होता समय से पहले बड़े हो जाना सोचना अपने आसपास के लोगों के बारे में गुदगुदे गद्दों की जगह हकीकत की पथरीली ज़मीन पर सो जाना बुरा तो वह भी न...
    8 years ago
  • Hamzabaan हमज़बान ھمز با ن
    छैला संदु पर बनी फिल्म को लेकर लेखक-फिल्मकार में तकरार - मंगल सिंह मुंडा बोले, बिना उनसे पूछे उनके उपन्यास पर बना दी गई फिल्म, भेजेंगे लिगल नोटिस जबकि निर्माता और निर्देशक का लिखित अनुम...
    9 years ago
  • वैतागवाड़ी
    सबद पर दस नई कविताएं - दस नई कविताएं *सबद* पर प्रकाशित हुई हैं. उनमें से एक नीचे है. सारी कविताओं को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. *व्‍युत्‍पत्तिशास्‍त्र* एक था चकवा. एक थ...
    9 years ago
  • कर्मनाशा
    बचा रहे थोड़ा मूरखपन - *कल रात सोने से पहले कुछ लिखा था वह आज यहाँ साझा है :* आज सुबह - सुबह मनुष्य के सभ्य होते जाने के बिगड़ैलपन की दैनिक कवायद के रूप 'बेड टी' पीते हुए उसे वि...
    9 years ago
  • मीठी मिर्ची
    नमस्ते-21 -
    9 years ago
  • UDAY PRAKASH
    जिसके कंठ से पृथ्वी के सारे वृक्ष एक साथ कविता पाठ करते थे : मिगुएल हर्नान्देज़ - मिगुएल हर्नान्देज़ ऐसा कवि नहीं था , जैसा हम अक्सर अपने आसपास के कवियों के बारे में जानते-सुनते हैं. उसका जीवन और उसकी कवितायेँ , दोनों के भीतर संवेदना, अनु...
    9 years ago
  • नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha
    तीन मुख़्तलिफ़ मिज़ाज महिलाओं का क़िस्सा - क़िस्त अव्वल साहबो, जब-जब हम फ़ेसबुक पर आते हैं, हमें अपनी अज़ीज़ा गीताश्री का ख़याल हो आता है. ये क़िस्सा उन्हीं के मुतल्लिक़ है. और उनके हवाले से हमारी दो औ...
    9 years ago
  • आपका साथ, साथ फूलों का
    बाबुषा: कहते हैं ज्ञानी दुनिया है फ़ानी, पानी पर लिक्खी लिखाई - *[ राग-बिराग* *प्रियतम !तेरी पहली दृष्टि, गूँज उठे जीवन में रागतेरी छुअन से चमक उठा माथे पर रक्ताभ सुहागमन भर कर सोह...
    9 years ago
  • उसने कहा था...
    सोऽहम् - (परसों, 7 जुलाई को गुलेरी जी की 132वीं जयंती थी. परदादा को याद करते हुए यहां उनकी एक व्यंग्यात्मक कविता, जो 'सरस्वती' पत्रिका में साल 1907 में प्रकाशित हु...
    9 years ago
  • मृत्युबोध
    ''दिल्ली'' हम तुमसे बदला जरूर लेंगे! -महेश्वर - [साथी गोरख की ख़ुदकुशी (?) के बाद जनमत में महेश्वर का लिखा मार्मिक संपादकीय। कवि-आलोचक-संपादक-संगठक महेश्वर को आज उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए] महेश्व...
    9 years ago
  • मेरा सामान
    उसने उंगलियों पर गिनी चीजें - उसने उंगलियों पर गिनी चीजें। और एक और झोंका आया, ध‌ड़ से बजी खिड़की। बाल लहरा गए हवा में, उसने अपनी छाया देखी काँच पर। बालों की भी छाया। उसने एक घर देखा साम...
    10 years ago
  • प्रतिलिपि | Pratilipi
    मार्केस का वह पहला आकर्षण: प्रभात रंजन - हिन्दू कॉलेज के दिन थे. दो उपन्यासों से परिचय उसी जमाने में हुआ था. एक साल आगे-पीछे. पहले मनोहर श्याम जोशी के ‘कसप’ से. यूपीएससी...
    11 years ago
  • सोची-समझी
    बात मेट्रो के डिब्बों के निर्माण की ही नहीं है ! - इतिहास ग़लत ढंग से पढाया जाता रहा है अब तक मसलन लाल किला दिल्ली का हो या आगरा का गुजरातियों ने ही बनवाया था. गोलकुंडा का किला भी और चार मीनार भी. टीपू स...
    11 years ago
  • .....मेरी कलम से.....
    दीदी के लिए - कौन पुण्य जो फल आयी हो? दीदी तुम जैसे माँ ही हो। पुलकित ममता का मृदु-पल्लव, प्रात की पहली सुथराई हो। मेरे अणुओं की शीतलता, मनः खेचर की तरुणाई हो। क...
    11 years ago
  • आखर कलश
    खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज - रोज गढती हूं एक ख्वाब सहेजती हूं उसे श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच आपके दिए अपमान के नश्तर अपने सीने में झेलती हूं सह जाती हूं तिल-तिल हंसती हूं खि...
    11 years ago
  • PRATILIPI / प्रतिलिपि
    सांस्कृतिक उग्रभक्ति और साहित्यः सत्य पी. मोहंती - प्रो. सत्य पी. मोहंती से रश्मि दुबे भटनागर और राजेन्द्र कौर की बातचीत मूल अंग्रेजी से अनुवाद: राजशेखर पाण्डेय यह साक्षात्कार अक्टूबर-नवंबर २०११में लिया गय...
    12 years ago
  • उलझन..
    नव वर्ष मंगलमय हो !! - भेड़िये रहें जंगलों में ही, इतना गोश्त और खून मिलता रहे उन्हें कि आदमखोर न बनने पायें, और शहरों में शिकार पर न निकलें वातावरण निर्भय हो !! नव वर्ष ...
    12 years ago
  • सारी दुनिया रंगा
    आवाज़ का ठिकाना - हिंदी लेखक की आवाज़ उसके लिखे में जिस जगह से सुनाई देती है, वह जगह कौनसी है? उसकी आवाज़ को कहाँ लोकेट किया जाए? प्रेमचंद की आवाज़ कई जगहों से सुनाई देती हु...
    12 years ago
  • Life's Extras & Ordinary
    डर... - आँखों की रौशनी में दुबका जब-तब उमेठता है कानों को फिसल कर राह सरकता है बालों की लम्बाई में और पसर जाता है हथेलियों में कोमल नाजुक तान को दीर्घ गंभीर ना...
    12 years ago
  • सुशीला पुरी
    - पहले -पहल जब धरती कुनमुनाई थी उसकी गोद मे गिरा था बीज वृक्ष होने के लिए तब से बंद हूँ मै तुम्हारी हथेलियों मे, पहले पहल जब हवा जन्मी थी सहेजा था उस...
    12 years ago
  • SAMAY SANKALP
    श्रीप्रकाश शुक्ल की 'घर' शीर्षक कविता - *|| एक ||* घर बनाने में बहुत-सी सामानें आयीं | घर को मिला सीमेंट, बालू और सरिया मिले कुछ मजदूर, कारीगर और बढ़ई मेरे हिस्से में आयीं...
    12 years ago
  • सफरनामा
    - एक कविता का बयान - गुंटर ग्रास मैं क्यूँ रहूँ मौन , छिपाए इतनी देर तक जो जाहिर है और होता आया है युद्धों में , जिनके पश्चात हम बच गए लोग होते हैं ,बमुश्...
    13 years ago
  • स्वप्नदर्शी
    सायंस और सोसायटी - सेन डियागो में प्लांटस एंड एनिमल जेनोम की सालाना मीटींग है, अच्छी किस्मत रही की मीटिंग के दिनों पूरी फुर्सत से मीटिंग अटेंड की, होटल में एक अच्छी बेबी-सि...
    13 years ago
  • पखेरू मेरी याद के
    विरक्ति - जब तुम विरक्त हुए तुम्हारे भीतर इस अहसास के लिए जगह बनाना मुमकिन नहीं रहा होगा कि तुम विरक्त हो रहे हो बाद में परिभाषित हुआ होगा कि तुम विरक्त हो अकेलेप...
    13 years ago
  • Dushyant
    'बिज्जी' को नोबेल ना मिलना - राजस्थान जिस वाचिक परंपरा की साहित्यिक विरासत के लिए जाना जाता है, 'बिज्जी' उसके जीवंत और स्वाभाविक प्रतिनिधि हैं। अब वैश्विक रूप से यह सिद्ध और प्रसिद्ध...
    13 years ago
  • त्रिमुहानी
    - अग्रसोची सदा प्रसन्न रहता उसे कोई पछतावा होता नहीं भ्रमजाल में जो कभी रहता नहीं धोखे खाकर कभी रोता नहीं सहना नहीं पड़ता उसे रियायत जो कभी करता नहीं स...
    13 years ago
  • pahala kadam
    landan ki aag ki lapaaat kahi bharat tak n pahuch jaye........ -
    13 years ago
  • काव्‍यम्
    इन दिनों अच्छी कविताओं की झड़ी है - *कथन – अंक 71, संपादक - संज्ञा उपाध्‍याय * ‘हर अंक एक विशेषांक’ प्रस्‍तुत करने वाली हिन्‍दी की इस शीर्ष पत्रि‍का के अंक में कविता के लिए इस बार कुछ ज्यादा ‘...
    13 years ago
  • भाषासेतु
    हिंदी कविता - दोस्तो, भाषासेतु और हिंदी साहित्य की दुनिया में पहली बार दाखिल होने वाले ये हैं नफीस खान। ३० नवम्बर १९८६ को बेतिया, बिहार में जन्मे नफीस जेएनयू में च...
    14 years ago
  • अनहद
    मां : कुछ कविताएं - * मां* *एक* मां के सपने घेंघियाते रहे जांत की तरह पिसते रहे अन्न बनती रही मक्के की गोल-गोल रोटियां और मां सदियों एक भयानक गोलाई में चुपचाप रेंगती रही... *...
    14 years ago
  • हरा कोना
    yah jo neela hai-2 -
    14 years ago
  • शीर्षक..
    किलों को जीतने की जगह ध्वस्त कर देने की उम्मीद भरी कविता... - आज यहाँ 'शीर्षक' में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की ताज़ा कवितायें. काफी अरसा हुआ नरेश सक्सेना की एक कविता पढ़ी थी, 'सीढ़ी'. मुझे एक सीढ़ी की तलाश है सीढ़ी दीव...
    14 years ago
  • UMRA QUAIDI (उम्र कैदी)
    2. गिरफ्तारी से पूर्व की त्रासदी। - जैसा कि मैं प्रथम किश्त में लिख चुका हूँ कि 01 मई, 1982 को अपहरण, बलात्कार एवं हत्या के आरोप में मुझे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी को भी पुलिस ने ऐ...
    14 years ago
  • samandar ke sapano me chaand
    इच्छा़ - तुम बैठो कुर्सी पर आराम से टेक लगाकर मैं बैठूँ पैरों के पास और अपना सिर तुम्हारे घुटनों पर रख लूँ तुम्हारे घुटने जिस रोशनी से चमकते हैं मैं उस तिलिस्म को...
    14 years ago
  • कुमार मुकुल की कविताऍं
    सबसे अच्‍छे ख़त - सबसे अच्‍छे ख़त वो नहीं होते जिनकी लिखावट सबसे साफ़ होती है जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है वो सबसे अच्‍छे ख़त नहीं होते जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है ...
    14 years ago
  • ज़ख्म परेशां है, चुप्पी से...
    -
  • मौलश्री
    -
  • हमन हैं इश्क़ मस्ताना
    -
  • नज़रिया
    -
  • तनहा रात
    -
  • तनहा फ़लक
    -

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